ऐ दिसंबर....!
क्या नवंबर क्या दिसंबर
जिंदगी जैसे इक बवंडर
उठा तुफान बाहर- अंदर
छोटा-सा दिल , पर बडा है खंज़र!
ठंडी राहें, ठंडी कराहें
सुनी पडी है गरम ये बॉंहें
धड़कन बंद है, सन्नाटा है
नुक्कड-चौराहा भरें आहें!
अब तू लाएगा साल नया?
नये बरस की नयी काया?
तेरा क्या आया, तेरा क्या गया?
मैंने "अपना लमहा" खोया! 🙁
अब न रहेगा वो ही मंज़र
चला जा अब तू ऐ दिसंबर🥺
तुझमें-मुझमें पडा है अंतर
इक है गिरी और है कंदर
मैं ना तुझको माफ करुंगी😠
न दिल को अपने साफ़ करुंगी
मेरा अंबर मेरा चंदर
मेरे मन में रहेगा निरंतर!
ऐ दिसंबर जा ना, तू😏
फिर से कभी ना आना तू
मेरा साल मेरा महिना😎
तुझे इससे न लेना-देना
तेरा ख़ौफ दिखा ना तू
मेरा चैन चुरा ना तू....! 🥺
मेरे लमहों को ले कर
चल पडूं पूर्व दिशा पर 😎
आता रहे तू पिछे पिछे
नज़र डाले नीचे नीचे
मुझको तू न पकड पाएगा☺
ज़िद न कर जाॅं से जाएगा🙄
ले ले अपनी शाल तू और जनवरी पे डाल तू
बदल ले खुद अपनी चाल तू
जा दुबककर कहीं जा बैठ
ना दिखा दुनिया को अपनी ऐंठ🙄
आने दे नवंबर के बाद जनवरी
कितनी सुनहरी प्यारी प्यारी🤗
नयी-नवेली गोरी दुलारी...
सब के मन की चॉंद-चकोरी! 😊
- सौ. जयश्री पराग जोशी
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