कसा मी असामी?

 शब्दांचा गाभा, नि:शब्द मी...... 

रंगाची आभा, नि:रंग मी, 

अन्, 

संगतीच्या सृष्टीत, निस्संग मी, निस्संग मी. 


चित्रातील "भाव रंग", आकार मी, 

रचनेतील "शब्द स्पंद", साकार मी. 

अन्, 

गुणांच्या आकारात, निर्गुण मी, निराकार मी. 


नव ऋतूचे नवपान मी, 

निर्झराचे गान मी. 

अनंत नाद ब्रह्माची लकेर मी

अन्, 

माझ्यातील अखेर मी. 


सृष्टीतील संभ्रांत मी, 

माझ्यातील आकांत मी. 

क्लांत मी, श्रांत मी, 

अन्, 

शांत मी अशांत मी. 


एककोशी आक्रोश मी, 

भावनांचा घोष मी. 

अपेक्षांचा शोष मी. 

अन्, 

कालघनाचा रोष मी. 


निर्गुणाचा पंख मी, 

नगण्याचा अंक मी. 

सृष्टीतील रंक मी, 

अन्, 

रिता मी रिता मी. 


तुटलेला पक्ष मी, 

भंगलेला कक्ष मी. 

माझ्यातील गवाक्ष मी, 

अन्, 

भंगलेल्या कक्षातील मोक्ष मी, मोक्ष मी. 


अनंताचा भास मी, 

सुटलेल्या श्वासाची आस मी. 

सुखाच्या कासेचा आभास मी, 

अन्, 

नियतीचा परिहास मी, परिहास मी. 


जसा मी, तसा मी, 

कसा मी, असामी? 


- सौ. जयश्री पराग जोशी. 


टिप्पण्या

टिप्पणी पोस्ट करा

या ब्लॉगवरील लोकप्रिय पोस्ट

नव्या वर्षा काय रे देशील?

पृथ्वीची आई

नादखुळे सौंदर्य